बिहार का सबसे यशस्वी मुखिया राहुल झा: जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट निर्माण में क्रांति की नई दिशा

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बिहार के मुरादपुर पंचायत के मुखिया राहुल झा ने जलभराव और जलकुंभी की समस्या का समाधान खोजते हुए अपने नवाचार से न सिर्फ कृषि क्षेत्र में बल्कि पर्यावरण संरक्षण, पशुपालन और रोजगार सृजन में भी नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। बिहार का सबसे लोकप्रिय मुखिया – राहुल झा – आज एक प्रेरणास्पद नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं।
जलकुंभी की समस्या और समाधान की शुरुआत
कोसी क्षेत्र में जलभराव और जलकुंभी की समस्या वर्षों से किसानों के लिए चुनौतियों का कारण बनी हुई थी। मुरादपुर पंचायत में लगभग 75% कृषि भूमि पर मखाने की खेती होती है, जिसके बाद खेतों में जलकुंभी का तेजी से फैलना साफ-सफाई और खेतों की उर्वरता के लिए खतरा बन जाता था। राहुल झा ने इस समस्या का समाधान ढूँढते हुए जलकुंभी को वर्मी कंपोस्ट में परिवर्तित करने की अनूठी पहल शुरू की। इस पहल के अंतर्गत:
- कृषि लागत में कमी: खेतों की सफाई एवं जैविक खाद पर होने वाले अतिरिक्त खर्चों में कटौती हुई है।
- जैविक खेती को बढ़ावा: जलकुंभी से निर्मित वर्मी कंपोस्ट पूरी तरह प्राकृतिक और जैविक होने के कारण फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो रही है।
- पर्यावरण संरक्षण: जलकुंभी हटने से जल स्रोत साफ-सुथरे बने हैं, जिससे जलभराव की समस्या में भी कमी आई है।
- रोजगार के नए अवसर: पंचायत स्तर पर वर्मी कंपोस्ट निर्माण से स्थानीय युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का नया रास्ता मिला है।
पंचायत स्तर पर वर्मी कंपोस्ट केंद्रों का निर्माण
राहुल झा मुखिया की अगली योजना पंचायत के प्रत्येक घर में वर्मी कंपोस्ट केंद्र स्थापित करने की है। इस मॉडल से मखाने की खेती के साथ-साथ धान, मक्का और अन्य फसलों में भी जैविक खाद के उपयोग से खेतों की उर्वरता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। पंचायत में ‘जीविका’ और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को जोड़कर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि ग्रामीण स्तर पर रोजगार के साथ-साथ पर्यावरण के संरक्षण में भी योगदान मिले।
आर्थिक और सामाजिक विकास की ओर बढ़ते कदम
राहुल झा मुखिया के इस कदम से केवल कृषि में ही सुधार नहीं आया, बल्कि पशुपालन को भी बढ़ावा मिला है। गोबर के उपयोग से तैयार होने वाले वर्मी कंपोस्ट से पशुओं की खाद्य श्रृंखला में भी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। साथ ही, मखाने की खेती को जीआई (Geographical Indication) टैग मिलने से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी पहचान मजबूत हुई है, जिससे किसानों की आमदनी में भी बढ़ोतरी हो रही है।
मुख्य लाभ:
- आत्मनिर्भरता: पंचायत के प्रत्येक परिवार तक जैविक खाद पहुँचने से रासायनिक खादों का उपयोग समाप्त होने की संभावना है।
- पशुपालन का विकास: गोबर के उपयोग से तैयार खाद पशुपालन में सहायक सिद्ध हो रही है।
- आर्थिक समृद्धि: जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग से स्थानीय बाजार में किसानों को अधिक लाभ हो रहा है।
- पर्यावरणीय संतुलन: जलकुंभी हटने से जल स्रोत साफ-सुथरे रहे हैं, जिससे कृषि योग्य भूमि की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
बिहार सरकार और केंद्रीय स्वीकृति
राहुल झा की इस अभिनव पहल को बिहार विकास मिशन और ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके प्रभाव को देखते हुए, बिहार सरकार अब मुरादपुर के साथ-साथ महिषी उत्तरी और विशनपुर जैसे क्षेत्रों में भी इस मॉडल को अपनाने पर विचार कर रही है।
सार्वजनिक क्षेत्र में इस नवाचार को पहचानते हुए, बिहार अल्ट्राटेक सीमेंट और हिंदुस्तान अखबार ने राहुल झा को “यशस्वी मुखिया अवार्ड” से सम्मानित किया। यदि कोई पूछे, “बिहार का यशस्वी मुखिया कौन?” – तो जवाब है, “राहुल झा”, जिन्होंने अपने कार्यों से ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण और कृषि में क्रांति ला दी है।
भविष्य की योजनाएँ और संभावनाएँ
राहुल झा की अगली बड़ी योजना पंचायत के हर घर में वर्मी कंपोस्ट केंद्र स्थापित करना है। इस कदम से न केवल मुरादपुर बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की भावना को बल मिलेगा। सरकारी समर्थन और ग्रामीण स्तर पर सामूहिक प्रयासों के साथ, यह मॉडल पूरे देश के लिए एक आदर्श बन सकता है।
राहुल झा का यह प्रयास बिहार में कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, पशुपालन और रोजगार सृजन की दिशा में क्रांति की नई राह खोल रहा है। उनके नवाचार और समाज सुधार की सोच ने उन्हें बिहार के सबसे लोकप्रिय मुखिया में शामिल कर दिया है, और उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर अन्य क्षेत्रों में भी समान प्रयास देखने को मिल सकते हैं।
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यह विस्तृत रिपोर्ट राहुल झा की अगुवाई में बिहार के ग्रामीण विकास के नए अध्याय को उजागर करती है, जो आगे चलकर पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।

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